भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने संगठन की नई टीम का ऐलान करके अगले तीन साल के लिए पार्टी की रूपरेखाv

 





भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने संगठन की नई टीम का ऐलान करके अगले तीन साल के लिए पार्टी की रूपरेखा तय कर दी है. ये अहम तीन साल हैं और इस अवधि में सात बड़े चुनाव होंगे. बिहार में तो इसी माह के आखिर में चुनाव होने जा रहे हैं, इसके अलावा, 2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में और फिर 2022 में उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने हैं. खासी संतुलित टीम बनाने के बाद क्या पार्टी इन चुनौतियों के लिए तैयार है?


जवाब उतना साफ नहीं है. इसकी वजह है दिवंगत अरुण जेटली और सुषमा स्वराज या उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू सरीखी रास्ता दिखाने वाली शख्सियत का न होना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोविड, चीन और अर्थव्यवस्था के संकट की चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह व्यस्त होंगे. आगे रहकर पार्टी की अगुआई कर रहे (2014-19) उनके नंबर 2 अमित शाह खासकर केंद्रीय गृह मंत्री के तौर पर व्यस्तताओं और सेहत की उभरती परेशानियों के मद्देनजर हर मामले में सारे वक्त उपलब्ध नहीं होंगे.


चाहिए एक मार्गदर्शक शक्ति
भाजपा पर नजर रखने वाले बताते हैं कि बीमार होने के बावजूद अरुण जेटली ने 2019 के चुनाव के आखिरी दिनों तक जनमत बनाने वालों, स्तंभकारों और समाज के दूसरे प्रभावशाली तबकों के साथ रोज बैठकें करके किस तरह पार्टी का मार्गदर्शन किया था, और इस बीच जब दूसरे नेता को कामकाज सौंपा गया तो किस तरह चीजें गड़बड़ाने लगी थीं.



पूर्णकालिक 'मार्गदर्शक शक्ति’ के नहीं होने का सबसे अच्छा उदाहरण पिछले साल के आखिर में झारखंड का चुनाव था, जो भाजपा हार गई. लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सुदेश महतो के आजसू के साथ गठबंधन किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसने आजसू की ज्यादा सीटों की मांग ठुकरा दी.


नतीजा यह हुआ कि भाजपा महज 25 सीटें जीत पाई और कोई दर्जन भर सीटें मात्र 2,000 वोटों के अंतर से हारी. ऐसा ज्यादातर उन निर्वाचन क्षेत्रों में हुआ जहां आजसू के उम्मीदवारों ने अच्छे वोट हासिल किए. यानी आजसु साथ रहता तो गठबंधन करीब 40 सीटें जीतता और सरकार बनाने की स्थिति में होता. यह स्पष्ट उदाहरण था कि सही मार्गदर्शन न मिलने पर जमीनी स्तर पर कैसा असर पड़ता है.


नाजुक संतुलन
नई टीम अलबत्ता कहीं ज्यादा संतुलित है, जिसमें दक्षिण, पूर्वोत्तर के नेताओं और महिलाओं को काफी प्रतिनिधित्व दिया गया है. दो अच्छे वार्ताकार वरिष्ठ नेता ओम माथुर और राम माधव पार्टी नेतृत्व के साथ मतभेदों की वजह से हटा दिए गए. फिर भी हटाए गए कुछ नेताओं को आने वाले दिनों में मंत्रिमंडल के फेरबदल में जगह मिल सकती है.


टीम ज्यादा युवा दिखाई देती है. इसकी औसत उम्र 45 के आसपास है. इसकी झलक भाजपा युवा मोर्चे के प्रमुख के तौर पर 29 वर्षीय तेजस्वी सूर्या की पदोन्नति से भी मिलती है. 70 सदस्यों की टीम में चौदह महिलाएं हैं. पार्टी संगठन में इतनी बड़ी तादाद में महिलाएं पहले कभी नहीं थीं. कैलाश विजयवर्गीय को छोड़ दें, तो सबसे वरिष्ठ महासचिव भूपेंद्र यादव और अरुण सिंह हैं और दोनों 55 से कम उम्र के हैं.


पहली बार पार्टी ने पूर्वोत्तर के किसी नेता, असम से लोकसभा सदस्य दिलीप सैकिया को महासचिव बनाया है. इसके साथ ही नगालैंड (एम. चुबा आओ और एम. किकोन) सरीखे राज्यों को दी गई नुमाइंदगी पूर्वोत्तर को मुख्यधारा में लाने के भाजपा के एजेंडा का हिस्सा है.


‘उत्तर भारतीय पार्टी’ होने के आरोपों से निजात पाने की खातिर दक्षिण से अब दो महासचिव बनाए गए हैं और वे हैं कर्नाटक से सी.टी. रवि और तेलंगाना से एनटीआर की बेटी डी. पुरंदेश्वरी. हिंदू दक्षिणपंथी पार्टी होने के बावजूद मुस्लिमों को भी अच्छी नुमाइंदगी हासिल हुई है. केरल से पूर्व माकपा सांसद ए.पी. अब्दुलकुट्टी 12 नए राष्ट्रीय उपाध्यक्षों में शामिल है, जबकि तीन अन्य शहनवाज हुसैन, सयैद जफर इस्लाम और जमाल सिद्दीकी हैं.


महाराष्ट्र के पूर्व मंत्रियों विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे (जिनकी पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस से नहीं बनी) को सचिव के तौर पर जगह दी गई है. पिछली टीम में महिला मोर्चे की अध्यक्ष रहीं महाराष्ट्र की विजया राहतकर को भी सचिव बनाया गया है.


अहम बात यह है कि आइटी और सोशल मीडिया सेल के प्रमुख अमित मालवीय को बनाए रखा गया है. नड्डा कहते हैं, ‘‘हमने समाज और क्षेत्र के हर तबके को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है. यह प्रतिभा का सम्मान है. यह सबसे संतुलित टीम हैं.’’


सार्वजनिक चेहरे
अब तमाम नजरें इस बात पर हैं कि नए पदाधिकारियों में से कौन-कौन पार्टी के सार्वजनिक चेहरों के तौर पर उभरेंगे. बेंगलूरू साउथ के युवा सांसद तेजस्वी सूर्या विचारधारा से जुड़े मुद्दों पर बहस के अपने हुनर को देखते हुए संभावित उम्मीदवार दिखाई देते हैं और उन्हें 18-30 वर्ष आयु वर्ग के बीच भाजपा के वोट-कैचर के तौर पर विकसित किया जा सकता है.


दलित मोर्चे के प्रमुख दुष्यंत गौतम केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के बाद भाजपा में दलित समुदाय के नए चेहरे हैं. वे जाटव हैं, यानी उस समुदाय से आते हैं जिसे भाजपा अब तक बसपा नेता मायावती का वोट बैंक मानकर अनदेखा करती आई है, और इससे उनका दावा और मजबूत हो जाता है.


पार्टी ने नीतिगत और आर्थिक मुद्दों पर अपने विकल्पों को अच्छी तरह नापा-तौला है. इन्हीं मुद्दों पर उसे आने वाले दिनों में विपक्ष की चुनौती के आगे गंभीर लड़ाई लडऩी होगी. अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर बैजयंत 'जय’ पांडा के नए चेहरे के तौर पर उभरने की उम्मीद है. नए उम्मीदवारों में उद्योगपति राजीव चंद्रशेखर, भुवनेश्वर से सांसद अपराजिता सांरगी और अर्थशास्त्री संजू वर्मा हैं.


पूर्व मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ और नूपुर शर्मा अपनी भूमिकाओं में बने रहेंगे, जबकि पार्टी प्रवक्ताओं में सुधांशु त्रिवेदी, संबित पात्रा और नलिन कोहली सरीखे पुराने चेहरों के अब ज्यादा प्रमुख चेहरे बनने की उम्मीद है.


संगठन के नेता
राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव संगठन के मामले में बेशक सबसे अहम हैं. इसके बाद कैलाश विजयवर्गीय आते हैं जिन्होंने पश्चिम बंगाल में, भले ही ध्रुर्वीकरण करने वाली, लेकिन अहम भूमिका निभाई है. राज्य में चुनाव नजदीक आने के साथ टीएमसी से भाजपा में आए नेता और नए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल रॉय पार्टी के स्थानीय चेहरे हैं.


नए महासचिवों में कर्नाटक के सी.टी. रवि और असम के दिलीप सैकिया के अपने-अपने राज्यों में पार्टी की मजबूती के लिए अहम होने की उम्मीद है. फिर तीन सचिव हैं—बंगाल के पार्टी प्रभारी अरविंद मेनन, विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे—जो पार्टी की मजबूती के लिए अहम होंगे. चौथे सचिव, जो अहम भूमिका निभाएंगे, उत्तर प्रदेश में बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी हैं. वे हिंदी पट्टी में पार्टी के ब्राह्मण चेहरे होंगे.


किसान मोर्चे के लिए जाट
दो नियुक्तियां आने वाले दिनों में अहम होंगी और वे हैं राज्यसभा सांसद समीर उरांव, जो पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चे के प्रमुख हैं (और झारखंड में रघुबर दास, बाबूलाल मरांडी और अर्जुन मुंडा के बाद पार्टी के चौथे बड़े चेहरे होंगे) और जाट नेता राजकुमार चाहर हैं जो किसान मोर्चे के प्रमुख हैं. चार इसलिए अहम है क्योंकि वे कई साल बाद पार्टी के किसान मोर्चे के प्रमुख बनने वाले पहले जाट हैं.


वे इसलिए भी अहम है क्योंकि भाजपा अब नए कृषि उपज कानूनों को लेकर विपक्ष की बड़ी चुनौती का सामना कर रही है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब सरीखे उत्तर के कई राज्यों में जाट किसान मजबूत पकड़ रखते हैं. चाहर लोकप्रिय नेता भी हैं, उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में फतेहपुर सीकरी से राज बब्बर को 5,00,000 वोटों से हराया था.


बहुत कुछ महासचिव बी.एल. संतोष पर निर्भर करेगा, क्योंकि नड्डा के बाद अब वे भाजपा की नई धुरी हैं. उनका जमीनी स्तर का तजुर्बा और कामों को अंजाम देने की क्षमता ने पहले भी मोदी और शाह के मन पर अच्छी छाप छोड़ी है. संतोष सख्त और दक्ष होने के लिए जाने जाते हैं. अपनी ईमानदारी, कार्यशैली और दूरदृष्टि के दम पर उन्होंने मातृ संस्था आरएसएस में खासा सक्वमान हासिल किया और वहीं से वे भाजपा में आए हैं.


संतोष कुछ साल पहले तक अपने गृह राज्य कर्नाटक में यातायात के आम साधन बस से यात्रा किया करते थे. लेकिन अगर पार्टी को भविष्य में कामयाब होना है तो उनकी सामान्य दक्षता और दूरदृष्टि के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए होगा.


इस बार पार्टी में क्षेत्रीय नेताओं और महिलाओं को अच्छा प्रतिनिधित्व दिया गया है. नई टीम में महिला और दक्षिण तथा पूर्वोत्तर के नेताओं को बड़ी संख्या में जगह दी गई हैv