अमन क्राइम न्यूज़ हरदोई -ब्यूरो चीफ रंजीत श्रीवास्तव
हरदोई। गर्रा नदी की कटान से शाहाबाद के ग्राम गढ़ेपुर का सीमांकन गड़बड़ाने के बाद इसके पुन: सीमांकन, सर्वेक्षण व अभिलेख दुरुस्तीकरण, बंदोबस्त का मामला 44 साल बाद भी फाइलों में अटका पड़ा है। इसके कारण गांव के तीन हजार लोग प्रभावित हैं। खतौनी, दाखिल-खारिज और बैनामे में परेशानी हो रही है। गांव के राजस्व अभिलेख वर्ष 1976 में सर्वेक्षण यूनिट के सुपुर्द किए गए थे। इसके बाद किसी ने मामले की सुध नहीं ली।
हरदोई-शाहजहांपुर की सीमा पर स्थित ग्राम गढ़ेपुर से सटकर गर्रा नदी बहती है। ये हरदोई और शाहजहांपुर की सीमा निर्धारित करती है। वर्ष 1975 व इससे पूर्व कुछ वर्षों में आई बाढ़ व कटान के बाद नदी की धार ने रास्ता बदल दिया।
जिसके बाद गढ़ेपुर गांव का सीमांकन गड़बड़ा गया था। ग्रामीणों की शिकायत पर तत्कालीन अफसरों ने गांव के पुन: सीमांकन, अभिलेखों के दुरुस्तीकरण, बंदोबस्त कराने के निर्देश दिए। 1976 में यहां के राजस्व अधिकारियों द्वारा जिले में काम कर रही सहायक सर्वेक्षण एवं अभिलेख विभाग की यूनिट को गांव के सभी राजस्व अभिलेख सौंप दिए गए।
लेकिन 44 साल बाद भी समस्या का समाधान नहीं हुआ। गांव के लोगों का कहना है कि अब तक दर्जनों बार शिकायतें की जा चुकी हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। ऐसे में अब उनकी उम्मीद टूटने लगी है। इस संदर्भ में सर्वेक्षण एवं अभिलेख क्रिया/बंदोबस्त अधिकारी उन्नाव के पेशी कानूनगो दयाशंकर शर्मा ने बताया कि मामला काफी पुराना है। ये प्रकरण कहां लंबित है, इसकी जानकारी कर जल्द प्रभावी कार्रवाई की जाएगी।
ये समस्या आ रही
अभिलेख दुरुस्तीकरण का मामला सर्वेक्षण यूनिट के पास लंबित है। जिसके कारण फसली वर्षों के तहत न तो उद्धरण खतौनी बनाई जा सकीं हैं, न ही मृतक खातेदारों के दाखिल खारिज व बैनामा नामांतरण को लेकर स्पष्ट आदेश जारी हो पा रहे हैं। गर्रा नदी की कटान से गढ़ेपुर गांव का सीमांकन गड़बड़ाने के साथ ही नदी की धार भी अपना रुख बदल चुकी है। जिसके कारण गांव के हिस्से के कुछ खेत दूसरे छोर पर चले गए हैं। उन खेतों व भूमियों के साथ ही गांव में पड़ने वाले खेतों की सीमा व रकबा भी विवाद की वजह बना रहता है। ऐसे में आए दिन ग्रामीणों में विवाद होता रहता है।
अफसरों ने दो बार लिखा पत्र
गढ़ेपुर गांव के पुन: सीमांकन व सर्वेक्षण अभिलेख दुरुस्तीकरण, बंदोबस्त के लिए 1976 में राजस्व अभिलेख सर्वेक्षण और अभिलेख क्रिया विभाग के सुपुर्द किए गए थे। इसके बाद 28 साल मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। 2004 में तत्कालीन जिलाधिकारी भुवनेश कुमार ने इसकी सुध ली और प्रक्रिया पूरी करने के लिए सहायक अभिलेख अधिकारी उन्नाव को इस संबंध में पत्र लिखा था। इसके बाद फिर से मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 2014 में तत्कालीन एसडीएम शाहाबाद के पत्र को संज्ञान में लेकर यहां तैनात रहे आनंद द्विवेदी ने प्रक्रिया जल्द पूरी कराने व अभिलेख उपलब्ध कराने के लिए डीएम उन्नाव को पत्र लिखा था। लेकिन इसके बाद बात आगे नहीं बढ़ सकी।
हाथ से लिखी खतौनी से चल रहा काम
गढ़पुर गांव के लोगों का कहना है कि गांव के बंदोबस्त की प्रक्रिया लंबित होने के कारण उन्हें राजस्व अभिलेख तहसील से नहीं मिलते। इसके लिए उन्हें सर्वेक्षण विभाग के लेखपाल से संपर्क करना पड़ता है। लेखपाल द्वारा हाथ से लिखी खतौनियां जारी की जाती हैं। काफी प्रयास के बाद बैंक ने कुछ मामलों में इन्हें स्वीकार कर केसीसी बनाए हैं। इन्हीं इंतखाबों के आधार पर ही बैनामे हो रहे हैं। मृतकों की वरासत भी हाथों से ही दर्ज हो रही है, जिससे सभी को परेशानी होती है।
मामला संज्ञान में ही नहीं है, अगर ऐसा है तो ये गंभीर विषय है। कर्मचारियों से इस संबंध में पूरी जानकारी जुटाई जाएगी। इसको लेकर प्रभावी प्रयास किए जाएंगे। - एपी श्रीवास्तव, एसडीएम शाहाबाद
गांव के बंदोबस्त की प्रक्रिया 44 साल से लंबित है। ये लंबा समय है। इतने वक्त में एक गांव के बंदोबस्त व सीमांकन न पूरा होना लोगों के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। इस मामले को वह पहले भी अधिकारियों के सामने उठा चुके हैं। पुन: इस मामले को उचित मंच पर ले जाकर इसका निस्तारण कराया जाएगा। - लालाराम राजपूत, जिला पंचायत सदस्य, शाहाबाद
गांव की आबादी लगभग तीन हजार है। अभिलेख दुरुस्तीकरण, बंदोबस्त की प्रक्रिया पूरी न होने से लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने, पट्टे व अन्य कामों में परेशानी होती है। वह कमिश्नर तक से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। - रुद्र प्रताप सिंह प्रधान, गढ़ेपुर, शाहाबाद